
Wednesday, April 28, 2010
देश से नहीं, खुद से गद्दारी

Sunday, April 25, 2010
पूर्ण आराम की सलाह
आस्था इसी का नाम है
Saturday, April 24, 2010
भई वाह, हर बार कमाल

ये हैं हमारे जाने-पहचाने जसपाल भट्टी साहब, हर बड़े मुद्दे को अपने अंदाज़ में उठाने के लिए मशहूर। याद है न आपको इनका फ्लॉप शो। वाही वाले। जब महंगाई मुद्दा बनती है तो ज़नाब अपने साथियों के साथ आलू प्याज की माला पहन-पहना कर निकाल पड़ते हैं और अब जबकि IPL हॉट मुद्दा बना हुआ है तो इसकी सच्चाई लेकर सड़क पर निकल पड़े। हालाँकि उन्होंने टीमो के नाम अपने हिसाब से ही तय किये हैं। उनका साथ देने में हर कोई आनंद का अनुभव करता है। यही तो है उनकी ताकत।
नफरत, गुस्सा और बेबसी
जयपुर में शुक्रवार को एक छात्रा ने खुद को आग लगाकर जान दे दी। उसने खुद को आग उस व्यक्ति के घर के सामने लगाई, जो उसे ब्लेकमेल कर रहा था। इस पूरे किस्से में नफरत, गुस्से और बेबसी की पराकास्ठा दिखाई देती है। उस छात्रा के पास शायद कोई रास्ता नहीं बचा था। सवाल यह उठता है कि आखिर हमारे राजस्थान में ऐसे वाकये क्यों होते रहते हैं। कभी जयपुर में शिवानी जडेजा के चेहरे पर सरेराह तेजाब दाल दिया जाता है। कभी अजमेर में छात्राओं की सीडी बनाकर ब्लेकमेल किया जाता है तो कभी नागौर में ऐसी ही घटना हो जाती है। क्यों नहीं हमारी सरकार आज तक ऐसे घिनौने अपराध करने वालों को कड़ा सबक नहीं सिखा पाई कि लोग ऐसा कुछ करने से पहले चार बार आगा-पीछा सोचने पर मजबूर हों।
ब्लेकमेल और शोषण की घटना न केवल किसी महिला का जीवन बर्बाद कर देती है, बल्कि हमारे समाज में उस परिवार को भी जीवन भर बिना किसी कसूर के सहानुभूति की बजाय ताने सुनने पड़ते हैं। जयपुर की घटना के बाद लोगो में गुस्सा फूट पड़ा, जो एक-दो दिन या कुछ ज्यादा दिनों में शांत भी हो जाएगा लेकिन पीड़ित परिवार को यह दंश जीवनभर झेलना पड़ेगा। यह मौका है की आगे ऐसी घटना न हो इसके लिए कदम उठा लिए जाये.
ब्लेकमेल और शोषण की घटना न केवल किसी महिला का जीवन बर्बाद कर देती है, बल्कि हमारे समाज में उस परिवार को भी जीवन भर बिना किसी कसूर के सहानुभूति की बजाय ताने सुनने पड़ते हैं। जयपुर की घटना के बाद लोगो में गुस्सा फूट पड़ा, जो एक-दो दिन या कुछ ज्यादा दिनों में शांत भी हो जाएगा लेकिन पीड़ित परिवार को यह दंश जीवनभर झेलना पड़ेगा। यह मौका है की आगे ऐसी घटना न हो इसके लिए कदम उठा लिए जाये.
Wednesday, April 21, 2010
एक उम्मीदों भरा फैसला
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Monday, April 19, 2010
मोदी, मनी और मंत्रियों की कहानी
सुप्रभात। आईपीएल में मोदी यानि ललित मोदी, मनी यानि धन और मंत्री पहले भी थे और अब भी हैं। फर्क न अब आया है और न आगे आएगा इसकी उम्मीद की जानी चाहिए। हमारे देश के कर्ता-धर्ताओ को यह सारा खेल अब समझ में आ रहा है। पहले इसमें सिर्फ खेल की सफलता ही दिखाई दे रही थी। दरअसल, बेहिसाब पैसा जहाँ आएगा, कुछ तो बात होगी ही। लेकिन, हमारे कर्णधार तब तक कुछ भी देखने की जहमत नहीं उठाते, जब तक कि कुछ करना मजबूरी न बन जाये। क्या कोच्ची टीम में शशि थरूर का नाम आने से पहले किसी ने इतनी बड़ी रकम में नीलामी पर आपत्ति उठाने कि जहमत उठाई थी। बिलकुल नहीं। शशि थरूर का नाम आया तो एक महिला का नाम भी आया। इससे आगे बढे तो ललित मोदी के साथ भी एक महिला का नाम जुड़ गया। यहाँ कड़ी से कड़ी जुडती गई और एक कोड़े की शक्ल बन गई। जो देश की पीठ पर पड़ता हुआ महसूस हुआ। जो गडबडझाले आईपीएल में हैं और हुए हैं, उनका सच तो अभी सामने आना है, यह तो शुरुआत भर है। कौन कितनी जल्दी कितना अमीर हुआ और किसने कहा से कितना पैसा लगाया, ये सब शायद पूरी तरह सामने न भी आ याये, लेकिन ललित मोदी से जुड़े सच सामने आने लगे हैं। २००७ जो व्यक्ति सिर्फ १९ लाख का टैक्स चूका रहा है, वो २००९-१० में ११ करोड़ का टैक्स कहा से चूका रहा है। तीन साल में ही उसके पास प्राइवेट जेट, नाव, मर्सिडीज और BMW जैसी कारो का काफिला कहा से आ जाता है? अगर थरूर से पंगा न होता तो क्या ये साड़ी बाते सामने आती? काम से काम निकट भविष्य में तो नहीं ही आती। अब सरकार अपने मंत्रियो की भी खबर ले रही है और मोदी से जुड़े लोगो की भी। खबर है की आयकर विभाग अब पता लगाएगा की मोदी ने २००६ में टैक्स क्यों नहीं दिया और सिर्फ तीन साल में उनकी दौलत में इतना अंतर कैसे आया। कितना जोरदार मजाक है।
हमारे देश में लोगो के पद तो चले जाते हैं लेकिन उनका कुछ भी कभी बिगड़ा हो, कोई दावा नहीं कर सकता। आग लगने पर कुआ खोदने की हमारी आदत जाएगी नहीं और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
हमारे देश में लोगो के पद तो चले जाते हैं लेकिन उनका कुछ भी कभी बिगड़ा हो, कोई दावा नहीं कर सकता। आग लगने पर कुआ खोदने की हमारी आदत जाएगी नहीं और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
प्रेरणा पुंज
बचपन से किसी पर आलसी होने का ठप्पा लगा हो तो उसे मिटाना तो मुश्किल होता ही है कई बार ठप्पा धारक उसे अपना सुरक्षा कवच भी बना लेता है। कुछ ऐसा ही मैंने भी किया। ब्लॉग गुरु और छोटे भाई दुलाराम सहारण से बातो-बातो में ही ब्लॉग बनाने की बात चली, कई निर्देशों और संदेशो के बाद आखिर ब्लॉग बन ही गया। अब नया संकट यह खड़ा हो गया की इसमें लिखा क्या जाये और कैसे लिखा जाये? दुलाराम और भाई कुमार अजय की नित नई पोस्ट देखकर काफी अच्छा लगता। मैं उन्हें बधाई देता और वो मुझे ओलमा। कि आपके ब्लॉग का क्या हुआ? यह बड़ा ही यक्ष प्रश्न था लेकिन इसे कितने दिन तक टालता। आखिर आज भाई दुलाराम से जब चैटिंग चल रही थी तो फिर वाही सवाल खड़ा हो गया। वही दो आंक या कहे कि ढाक के तीन पात। फिर संकल्प लेना ही पड़ा। आज ही कुछ न कुछ लिखूंगा। या ऐसे कहे कि आज लिखना ही पड़ेगा। तो फिर अखबार का प्रथम संस्करण छोड़ने क बाद मैंने लिखना शुरू किया और नगर संस्करण के पहले इसे विराम दे रहा हूँ। देना ही पड़ेगा। लेकिन मुझे इतना समझ में आ गया कि कुछ लोग दुलाराम जैसे क्यों दूसरो से अलग होते हैं। कैसे वो किसी काम को अंजाम तक पहुंचा देते हैं। मेरे जैसे जन्मजात आलसी से ब्लॉग शुरू करवा देना उनके ही बूते की बात क्यों है। कैसे वो लोग चूरु जैसे थोड़े छोटे नगर में रहते हुए भी रास्ट्रीय स्तर के कामो को अंजाम दे पाते हैं। अब मेरी समझ में आ गया।
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